जैन दांपत्य शिविर, जयपुर: 23 अगस्त 2025 को जयपुर के कीर्ति नगर क्षेत्र में एक अद्वितीय, ज्ञानवर्धक और आत्मिक रूप से समृद्ध “जैनत्व दांपत्य संस्कार शिविर” का आयोजन हुआ। पूज्य मुनिश्री आदित्य सागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में सम्पन्न इस शिविर ने दंपत्तियों को केवल सीखने का अवसर ही नहीं दिया, बल्कि अपने संबंध को नए दृष्टिकोण, नई ऊर्जा और गहरे आध्यात्मिक मूल्यों से पुनः जोड़ने का भी अवसर प्रदान किया।
देश के विभिन्न भागों से आए दंपत्तियों ने इस शिविर में सहभाग कर यह अनुभव किया कि दांपत्य जीवन केवल साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि विश्वास, समर्पण, संवेदना और संस्कारों से जुड़ी एक आध्यात्मिक यात्रा है। शिविर में दिए गए उपदेशों और चर्चाओं ने सभी को यह समझाया कि जब संबंधों में जैन जीवनशैली के मूल्य—जैसे अहिंसा, संयम, मधुरता और सह-अस्तित्व—आ जाते हैं, तो दांपत्य न केवल मजबूत होता है बल्कि जीवन का हर निर्णय अधिक शांत और सामंजस्यपूर्ण हो जाता है।
इस आयोजन ने दंपत्तियों को यह संकल्प लेने की प्रेरणा दी कि वे केवल जीवनसाथी नहीं, बल्कि धर्म-सहयात्री बनकर एक-दूसरे के विकास और उत्थान के लिए साथ खड़े रहेंगे। सचमुच, यह शिविर दांपत्य को बाहरी बंधन से उठाकर एक आंतरिक साधना में बदल देने वाला अनुभव साबित हुआ।

जैन दांपत्य शिविर जयपुर: दांपत्य संस्कार शिविर – क्यों है यह अनोखा?
यह शिविर केवल प्रवचन सभा नहीं, बल्कि जीवन को संस्कारित करने की आध्यात्मिक कार्यशाला है।
👉 यहाँ पति-पत्नी को यह सीख मिली कि धैर्य और त्याग ही रिश्तों की सबसे मजबूत नींव हैं।
👉 माता-पिता के संस्कार ही संतान की सबसे बड़ी धरोहर होते हैं।
👉 पारिवारिक जीवन केवल समझौता नहीं, बल्कि आत्मिक साधना और सेवा का माध्यम है।
जैन दांपत्य शिविर जयपुर: मुनिश्री का अमूल्य मार्गदर्शन
मुनिश्री आदित्य सागर जी ने अपने ओजस्वी प्रवचनों में दंपत्तियों को जीवन की गहराइयों को समझने योग्य अनमोल बातें सिखाईं –
उन्होंने कहा –
“परिवार तभी मजबूत बनता है जब उसमें विश्वास की जड़ें, संयम की शाखाएँ और सद्भाव के फल हों।”
दंपत्तियों को प्रेरित किया गया कि वे महिने में इच्छा अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और आजीवन सप्त व्यसनों का त्याग करें।
मुनिश्री ने यह भी कहा कि –
“मनुष्य पर्याय बार-बार नहीं मिलती, इसलिए इसे व्यर्थ न गंवाएँ। जो भी समय मिला है, उसे सार्थक बनाने का प्रयास करें।”
दंपत्तियों को विशेष रूप से यह समझाया गया कि –
“आपका आचरण ही आपकी आने वाली पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा संस्कार है। इसलिए यह संस्कार शिविर केवल आपके लिए नहीं, बल्कि आपके बच्चों और उनके भविष्य के लिए भी आवश्यक है।”
शिविर का सबसे प्रेरणादायी क्षण
जब मुनिश्री अप्रमित सागर जी एवं मुनिश्री सहज सागर जी ने सभी पुरुषों के मस्तक पर चंद्राकार बनाकर केसर मिश्रित चंदन तिलक लगाया – तो वातावरण में अद्भुत शांति और पवित्र ऊर्जा का संचार हुआ।
इसी प्रकार महिला वर्ग का तिलक वंदन ब्रह्मचारी दिदियों द्वारा किया गया। यह दृश्य अत्यंत भावपूर्ण था, जिसने प्रत्येक सहभागी को यह अनुभव कराया कि यह तिलक केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानसिक शुद्धि और आत्मिक जागरण का पवित्र प्रतीक है।
पावन समापन
शिविर के अंत में सभी दंपत्तियों ने मन, वचन और काया की पूर्ण शुद्धि के साथ व्रत-नियमों को अपनाने का दृढ़ संकल्प लेते हुए कर-श्रीफल अर र्पित किया और सामूहिक भक्ति में सहभाग किया। वह क्षण मानो पूरे वातावरण को एक अलग ही पवित्रता से भर गया—जहाँ भक्ति की ध्वनि, आस्था की ऊर्जा और दांपत्य के भावनात्मक बंधन एक साथ स्पंदित हो रहे थे। ऐसा लगा जैसे हर दंपत्ति के भीतर एक नई शुरुआत का दीप प्रज्वलित हो गया हो।
इस सुंदर समापन ने सभी को यह एहसास कराया कि दांपत्य केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो आत्माओं का संस्कारित सम्मिलन है—जो जब धर्म और संस्कारों से जुड़े होते हैं, तो पूरे परिवार और समाज में सकारात्मकता का प्रवाह बढ़ता है।
अगली बार जब यह शिविर आयोजित हो, तो इसे मात्र एक आयोजन न समझें।
यह वह दुर्लभ अवसर है जहाँ आप अपने रिश्ते को गहराई से समझ सकते हैं, अपने जीवनसाथी के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ सकते हैं और अपने बच्चों के भविष्य को अधिक संस्कारित, संतुलित और मूल्यप्रधान दिशा दे सकते हैं।
क्योंकि—“संस्कारित दांपत्य ही समृद्ध समाज की नींव है,
और यही नींव आने वाले भारत को संस्कारित करेगी।”
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