साल था 1947। हवा में आज़ादी का जोश था, लेकिन ज़मीन पर खून और आँसुओं का सैलाब।भारत और पाकिस्तान के बंटवारे ने न जाने कितने घर उजाड़ दिए, कितने मंदिर और धर्मस्थल वीरान हो गए। इसी उथल-पुथल में मुल्तान (आज का पाकिस्तान) का लगभग 150 साल पुराना जैन मंदिर भी इतिहास की सबसे कठिन परीक्षा से गुज़रा। इस मंदिर की दीवारों पर आज भी चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ और णमोकार मंत्र के अंकन उस समय की आस्था के साक्षी हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी कहानी सिर्फ स्थापत्य नहीं है, बल्कि वह है जब आस्था मृत्यु से बड़ी साबित हुई और एक चमत्कारी विमान यात्रा ने पूरी विरासत को सुरक्षित भारत पहुँचा दिया।
पाकिस्तान का जैन मंदिर: मंदिर और समुदाय की चिंता
पंजाब के मुल्तान का यह मंदिर विभाजन से पहले जैन समुदाय के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र था। पर जब दंगे भड़के, तो प्रश्न उठ खड़ा हुआ—“क्या इन पवित्र मूर्तियों और जिनवाणी (धार्मिक ग्रंथों) को सुरक्षित भारत ले जाया जा सकता है? ”बस और ट्रेनें मौत के कारवाँ बन चुकी थीं। ऐसे में प्रतिमाओं और धर्मग्रंथों को छोड़ देना जैन समाज के लिए संभव नहीं था।
पाकिस्तान का जैन मंदिर: हिम्मत की उड़ान – 85 मूर्तियाँ और एक विमान
समुदाय के प्रतिनिधि पहले दिल्ली, फिर बंबई पहुँचे। बहुत प्रयासों के बाद उन्हें एक निजी कंपनी से चार्टर विमान मिला। किराया उस समय प्रति व्यक्ति 400 रुपये था—जो उस दौर में एक बहुत बड़ी राशि थी। जब विमान में 85 मूर्तियाँ, जिनवाणी और यात्रियों का सामान रखा गया, तो जहाज़ ओवरलोड हो गया।
पायलट ने साफ कहा—“या तो लोग जा सकते हैं, या मूर्तियाँ। दोनों नहीं।”
आस्था की परीक्षा
तब समाज की महिलाओं ने आँसुओं के साथ उत्तर दिया — “हमें यहाँ छोड़ दो, पर हमारी मूर्तियाँ और जिनवाणी भारत पहुँचा दो।” यह सुनकर पायलट स्तब्ध रह गया। उसने पहली बार आस्था को इतनी गहराई से महसूस किया। आख़िरकार उसने जोखिम उठाने का निर्णय लिया और कहा— “अगर ये लोग पाकिस्तान में रह गए, तो वैसे भी मारे जाएंगे। बेहतर है, मैं इन्हें मूर्तियों सहित भारत ले जाऊँ।
पाकिस्तान का जैन मंदिर: चमत्कार की उड़ान
विमान ने उड़ान भरी और यात्रियों की ज़ुबान पर था—“णमोकार मंत्र।”
महिलाओं ने प्रण लिया कि जब तक जहाज़ सुरक्षित भारत नहीं उतरेगा, वे न तो भोजन करेंगी और न ही पानी पिएँगी। ओवरलोड होने के बावजूद जहाज़ सहजता से उड़ रहा था। पायलट लगातार दोहराता रहा — “इतना भार लेकर मैंने कभी विमान नहीं उड़ाया। यह तो कोई चमत्कार है।”
पायलट का परिवर्तन
जोधपुर पहुँचने के बाद पायलट ने मूर्तियों को देखने की इच्छा जताई।
जैन समाज ने उत्तर दिया—“पहले मांसाहार और नशा छोड़ने की प्रतिज्ञा करो, तभी दर्शन मिलेगा। ”वो पायलट सिख था। उसने उसी समय जीवनभर मांसाहार त्यागने की प्रतिज्ञा ली। तब जाकर उसने तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के दर्शन किए और श्रद्धा से प्रणाम किया।
विरासत का नया घर
वह विमान यात्रा केवल लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरी आध्यात्मिक विरासत को भी सुरक्षित भारत ले आई। आज वही प्रतिमाएँ और जिनवाणी जयपुर (आदर्श नगर स्थित मुल्तान जैन मंदिर) में सुरक्षित रखी गई हैं। इसी मंदिर में पंडित टोडरमल जी की रहस्यपूर्णा चिट्ठी, जो मुल्तान के साधुओं के लिए लिखी गई थी, आज भी संरक्षित है।
निष्कर्ष
मुल्तान का यह जैन मंदिर केवल एक इमारत नहीं, बल्कि आस्था, साहस और चमत्कार की जीवित कहानी है।
जहाँ महिलाएँ अपने जीवन से बड़ी मूर्तियों की रक्षा को मान देती हैं, जहाँ एक सिख पायलट जैन धर्म की प्रेरणा से शाकाहारी बन जाता है—वहाँ यह स्पष्ट होता है कि धर्म केवल पूजा का साधन नहीं, बल्कि जीवन की दिशा है।
जब भी आप जयपुर के आदर्श नगर स्थित उस मंदिर में जाएँ, तो याद रखिएगा—
ये केवल पत्थर की मूर्तियाँ नहीं, बल्कि वो विरासत हैं जो मृत्यु से भी बड़ी आस्था की गवाही देती हैं।