दूध: सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसी तस्वीरें और रील्स दिखाई देती हैं जो भीतर तक हिला देती हैं — बीमार, कमजोर, उपेक्षित गायें; आँखों में दर्द, शरीर पर घाव, और कैप्शन लिखा होता है — “देखिए गौशालाओं की सच्चाई।” लोग दुखी होते हैं, गुस्सा करते हैं, और नतीजा निकाल लेते हैं — “सभी गौशालाएँ एक जैसी हैं।” पर क्या सच्चाई सचमुच इतनी सीधी है? क्या हर जगह वही दर्द, वही उपेक्षा है —या कहीं ऐसी जगहें भी हैं जहाँ इंसान ने करुणा को अपना धर्म बना लिया है?
दूध वाकई अब करुणा का नहीं, कारोबार का प्रतीक बन गया है?
कभी सोचा है — जो दूध हम हर सुबह सहजता से पीते हैं, वह कैसे और किन परिस्थितियों से होकर आता है?
कई बार गायों को अधिक दूध देने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं, हार्मोनल दबाव डाला जाता है।
उनके बछड़ों को उनसे अलग कर दिया जाता है ताकि पूरा दूध इंसानों तक पहुँच सके। और जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तो उसका अंत अक्सर उपेक्षा, परित्याग या किसी मांस मंडी के रास्ते पर होता है।
यह वह सच्चाई है जो हम देखना नहीं चाहते — क्योंकि वह हमारी रोज़मर्रा की आदतों पर सवाल उठाती है। क्या हमारी सुबह की चाय किसी माँ की ममता के आँसुओं से भीगी हुई है?
जहाँ दूध नहीं, दया की धारा बहती है
हर जगह एक सी नहीं होती। कुछ जगह ऐसी
हैं जहाँ गाय केवल ‘दूध देने वाली’ नहीं, बल्कि जीवात्मा मानी जाती है।
ऐसी ही एक प्रेरणादायक जगह है — “शांतिधारा गिर गौशाला”, जो जैन परंपरा की करुणा और सेवा की जीवंत मिसाल है।
यहाँ गायें सिर्फ़ जीव नहीं, प्रार्थना हैं। यहाँ दूध नहीं, वात्सल्य प्राथमिकता है।
यहाँ सेवा कोई दान नहीं, बल्कि दायित्व है।
जब सेवा बन गई साधना
शांतिधारा गिर गौशाला की स्थापना आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के मार्गदर्शन में हुई थी —
उनकी शिक्षा सरल थी: “ जियो और जीने दो।” यह स्थान जैन धर्म के तीन मूल स्तंभों
— अहिंसा, करुणा और अपरिग्रह — पर आधारित है।
यहाँ हर गाय का नाम है, स्वास्थ्य रिकॉर्ड है, और उसका पूरा ध्यान परिवार की तरह रखा जाता है।
गाय का पहला अधिकार उसके बछड़े को दिया जाता है। किसी भी गाय पर दूध देने का दबाव नहीं डाला जाता
— ना कोई इंजेक्शन, ना कोई कृत्रिम प्रक्रिया।और जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तो उसे न बेचा जाता है, न छोड़ा जाता है बल्कि उसे जीवनभर सम्मान और सेवा दी जाती है। यही भाव इसे “गौशाला” नहीं, बल्कि “गौसेवा केंद्र” बनाता है।
खेत से थाली तक — आत्मनिर्भरता की मिसाल
लगभग 125 एकड़ भूमि में फैली शांतिधारा गौशाला आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
यहाँ पूरी तरह जैविक खेती होती है — हरा चारा, दाना, चोकर सब यहीं उगाया जाता है। ना रासायनिक खाद, ना कृत्रिम पौष्टिक तत्व। गोबर से बायोगैस, जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट तैयार की जाती है।
यह एक सुंदर चक्र है —
“गाय देती है, और हम लौटाते हैं।”
बिना शोषण, बिना स्वार्थ।
आस्था और विज्ञान का संगम
यहाँ तैयार होने वाले सभी उत्पाद — A2 गिर गाय के दूध से बनते हैं।
- शुद्ध घी
- दूध और दही
- पंचगव्य औषधियाँ (नस्य तेल, नेत्र अमृत, अर्जुन घृत)
- गोबर से बने जैविक दीये और खाद
इनका उद्देश्य लाभ नहीं, बल्कि “लाभ से सेवा” है — ताकि हर कमाई का अंश फिर किसी जीव के संरक्षण में लगाया जा सके। और आज, ये सभी उत्पाद Shantidhara.in पर उपलब्ध हैं — ताकि आप भी गौसेवा के इस चक्र से जुड़ सकें।

गौशाला नहीं, जीवनशाला
यहाँ हर गाय का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण होता है। डॉक्टर, टीकाकरण, स्वच्छता — सबका ध्यान रखा जाता है।
गायों को खुला आकाश, धूप और छाया का संतुलन दिया जाता है। क्योंकि यहाँ माना जाता है —“गाय प्राणी नहीं, प्रार्थना है।”
शिक्षा, सेवा और प्रेरणा
शांतिधारा केवल सेवा नहीं करती, बल्कि सेवा सिखाती भी है।
यहाँ किसानों, विद्यार्थियों और युवाओं के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं —
ताकि वे समझें कि गाय सिर्फ़ परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण और मानवता के भविष्य की कुंजी है।
हर कोई शांतिधारा नहीं जा सकता — पर संवेदना हर कोई चुन सकता है
यह सच है कि हम सब रोज़ाना का दूध सीधे शांतिधारा जैसी जगहों से नहीं ले सकते।
लेकिन हम यह ज़रूर कर सकते हैं —
स्थानीय डेयरी या विक्रेता से दूध लेते समय यह जानें कि उनका स्रोत कौन-सी गौशाला है।
देखें कि गायों के साथ कैसा व्यवहार होता है — क्या उन्हें जबरन दूध दिलवाया जाता है या नहीं।
अगर गाय दूध देना बंद कर दे, तो क्या उसे सुरक्षित रखा जाता है या बेच दिया जाता है?
“अपने दूध के स्रोत पर सवाल उठाना ट्रेंड नहीं, ज़िम्मेदारी है।”
हम “करुणा आधारित दूध” का विकल्प चुन सकते हैं —जैसे शांतिधारा जैसी संस्थाओं से जुड़कर ‘गौदत्तक’ (Adopt a Cow)
प्रकल्प में भाग लेना, या महीने में एक बार गौसेवा के लिए योगदान देना। भले दूध हमारी रसोई में न पहुँचे, पर सेवा का भाव ज़रूर हमारे हृदय तक पहुँचेगा।
समापन: सवाल हमारे लिए
सोचिए — अगर एक गौशाला प्रेम और संवेदना से भरी हो सकती है, तो क्या हमारी सोच नहीं बदल सकती?
क्या हम सिर्फ़ दूध के उपभोक्ता बने रहेंगे, या करुणा के दूत भी बनेंगे?
सच्ची गौसेवा धर्म नहीं — मानवता की पहचान है।
शांतिधारा गिर गौशाला हमें यही सिखाती है कि धर्म केवल मंदिरों में नहीं, जीवन के व्यवहार में होता है।
हर जीव के प्रति सम्मान ही सच्ची पूजा है।
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