147 views
Share:

“गोमटगिरि (2025) विशेष: आयोजन के मुख्य सूत्र बिंदु”

Indore: गोमटगिरि, इंदौर में आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के पट्टाचार्य महोत्सव के पश्चात पहली बार ऐसा दिव्य आयोजन संपन्न हुआ, जिसने हर श्रद्धालु के हृदय में आध्यात्मिक ऊर्जा और भावविभोर कर देने वाली प्रेरणा का संचार कर दिया।

  • प्रातः 10 बजे, जब गुरुदेव की आहार चर्या संपन्न हुई, तब कैलाश विजयवर्गीय जी को उन्हें आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने विनम्रता से कहा —

    “गुरुवर को आहार देकर मैं स्वयं को धन्य मानता हूं।”
    उनके इस भाव ने समर्पण की सच्ची परिभाषा को सजीव कर दिया।

  • दोपहर 3 बजे, आचार्य श्री के गहन और आत्मजागृति से भरे प्रवचनों ने उपस्थित जनसमूह को आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया। हर वाक्य, हर विचार एक नए चिंतन का द्वार खोल रहा था।
  • शाम 5 बजे, भगवान बाहुबली का महामस्तकाभिषेक ऐसी भव्यता और भावों के संग संपन्न हुआ, कि मानो आकाश भी भक्तिरस से सराबोर हो उठा। जल, पुष्प, और मंत्रों की गूंज ने वातावरण को आध्यात्मिक दिव्यता से भर दिया।
  • इसी श्रृंखला में सुमति धाम के मनीष-सपना गोधा का सम्मान भरत मोदी द्वारा किया गया — यह सम्मान केवल व्यक्ति का नहीं, बल्कि समर्पित सेवा की भावना का प्रतीक था।
  • प्रथम कलश का सौभाग्य संजय पटोदी एवं महेंद्र बडजात्या परिवार को प्राप्त हुआ।
    वहीं शांतिधारा के पुण्यार्जक बने विकास जैन (JMB परिवार) और मुख्य पुण्यार्जक रहे भरत-कुसुम मोदी परिवार
  • समाजजनों ने ₹2500 की राशि में 24 तीर्थंकरों की ध्वजा चढ़ाकर जो पुण्य अर्जित किया, वह गुरुदेव की समीपता में समर्पण की अमूल्य छवि बन गया। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आस्था की अभिव्यक्ति थी।
  • इस पावन अवसर पर कैलाश विजयवर्गीय जी ने 51 लाख पेड़ लगाने का संकल्प लिया — यह सिर्फ एक घोषणा नहीं, बल्कि धरती मां के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि थी।
    साथ ही उन्होंने गुरुदेव से पितृ पर्वत पर चलने का आग्रह कर इस आयोजन को और भी भावपूर्ण बना दिया।
  • अभिषेक के उपरांत, सभी श्रद्धालुओं के लिए वात्सल्य भोज का आयोजन हुआ, जिसमें जनसमूह ने प्रेम, सामूहिकता और एकता के साथ सहभागिता की।
  • कार्यक्रम का संचालन सौरभ पटोदी ने कुशलता और आत्मीयता के साथ किया।

यह आयोजन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं था, बल्कि संयम की प्रेरणा, सामूहिक सेवा का उदाहरण औरपर्यावरण के प्रति जागरूकता का संदेश भी था।
गुरुदेव के सान्निध्य में श्रद्धा, साधना और समाज सेवा का यह अनुपम संगम, हर आत्मा में जिनवाणी की अलौकिक ज्योति जगा गया।

आइए, हम सब इस ऊर्जा को जीवन का हिस्सा बनाएं, और गुरुवर की शिक्षाओं को व्यवहार में उतारते हुए, जिनशासन की महिमा को युगों तक गूंजाएं।

जिनशासन की जय हो!