
दक्षिण भारत की धरती पर एक ऐसा नगर है, जहाँ इतिहास आज भी पत्थरों में साँस लेता है — हलबीडु (Halebidu)। कर्नाटक के हासन ज़िले में स्थित यह प्राचीन नगरी कभी 12वीं शताब्दी में होयसला साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। आज यह स्थान न सिर्फ़ अपनी सुंदरता के लिए, बल्कि अपने जैन मंदिरों की भव्यता के लिए भी प्रसिद्ध है।
इतिहास की झलक
“हलबीडु” का अर्थ होता है — पुराना शहर (Old City)। कभी इसे “द्वारसमुद्र” के नाम से जाना जाता था। यही वह स्थान था जहाँ से होयसला शासक विश्णुवर्धन और वीर बल्लाल द्वितीय ने अपनी कला, संस्कृति और धर्म का विस्तार किया। समय की धूल में छिपा यह नगर आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है, जहाँ के हर पत्थर में शिल्पकला की एक अनकही कहानी छिपी है।
हलबीडु जैन मंदिर परिसर
द्वारसमुद्र झील और केदारेश्वर मंदिर के पास स्थित हलबीडु जैन बसदी परिसर में तीन मुख्य मंदिर हैं —
- पार्श्वनाथ बसदी
- शांतिनाथ बसदी
- आदिनाथ बसदी
इन तीनों मंदिरों की रचना 12वीं शताब्दी में की गई थी और ये सभी जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं — पार्श्वनाथ, शांतिनाथ और आदिनाथ।
वास्तुकला: पत्थरों में जमी परंपरा
हलबीडु की जैन बसदियाँ, होयसला स्थापत्य की उत्कृष्ट मिसाल हैं। इनके ड्रविड़ शैली के नक़्क़ाशीदार स्तंभ, भव्य सभामंडप (महमंडप) और मोनोलिथिक मूर्तियाँ देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

पार्श्वनाथ बसदी
यह परिसर का सबसे बड़ा और भव्य मंदिर है। इसके नवरंग हॉल और काले पत्थरों के विशाल स्तंभ इसकी सबसे बड़ी पहचान हैं।इन स्तंभों के बारे में कहा जाता है कि ये “कर्म के अनेक परतों” का प्रतीक हैं, जो आत्मा को नीचे खींचती हैं। यहाँ देवी पद्मावती और यक्ष धर्मेन्द्र की सुंदर मूर्तियाँ भी हैं, जिनके तीन फन वाले नाग के साथ रूपांकन अद्भुत है।
शांतिनाथ बसदी
यहाँ की मुख्य मूर्ति 18 फीट ऊँची शांतिनाथ भगवान की है, जो मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है। मंदिर के ग्रेनाइट के चौकोर स्तंभ देखने योग्य हैं और समय-समय पर इनका संरक्षण कार्य भी किया जाता है ताकि यह कला अमर बनी रहे।
आदिनाथ बसदी
यह तीनों में सबसे छोटा मंदिर है, जिसमें आदिनाथ भगवान और देवी सरस्वती की मूर्तियाँ हैं। इसके पास स्थित हुलिकेरे कल्याणी जलाशय और 18 फीट ऊँचा मानसस्तंभ इसकी शोभा को और बढ़ाते हैं।
संरक्षण और खुदाई
इस क्षेत्र में अब तक 1000 से अधिक मूर्तियाँ पाई जा चुकी हैं। पूरा परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है और अब यूनेस्को भी इसकी देखरेख कर रहा है। 2019 में यहाँ खुदाई के दौरान 10 नई मूर्तियाँ मिलीं, जिनसे यह संकेत मिला कि ज़मीन के भीतर और भी जैन मंदिर छिपे हो सकते हैं।
ASI अब यहाँ एक खुले संग्रहालय (Open Air Museum) बनाने की योजना पर काम कर रहा है ताकि पर्यटक इन अनमोल धरोहरों को नज़दीक से देख सकें।

हलबीडु यात्रा जानकारी
- स्थान: हासन, कर्नाटक
- देवता: पार्श्वनाथ, शांतिनाथ, आदिनाथ
- घूमने का समय: लगभग 1 घंटा
- मुख्य पर्व: महावीर जयंती
- निर्माता: विश्णुवर्धन, वीर बल्लाल द्वितीय
- स्थापना काल: 12वीं शताब्दी
- मंदिरों की संख्या: 3
भ्रमण का सर्वश्रेष्ठ समय
दक्षिण भारत का मौसम वर्षभर गर्म और आर्द्र रहता है, लेकिन अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय सबसे उपयुक्त है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और आप बिना थके इस ऐतिहासिक परिसर की हर बारीकी को महसूस कर सकते हैं।
कैसे पहुँचे हलबीडु
वायु मार्ग:
सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा मैसूर एयरपोर्ट (160 किमी) है। दूसरा विकल्प बेंगलुरु का केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (230 किमी) है, जहाँ से टैक्सी या बस की सुविधा आसानी से मिल जाती है।
रेल मार्ग:
हासन, मैसूर और मंगलुरु के रेलवे स्टेशन हलबीडु से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं।
सड़क मार्ग:
यहाँ तक आप बस, कैब या निजी वाहन से आसानी से पहुँच सकते हैं। सड़कों की स्थिति अच्छी है और मार्ग बेहद मनमोहक।
अंत में
हलबीडु की धरती पर कदम रखते ही ऐसा लगता है जैसे समय ठहर गया हो। हर पत्थर, हर स्तंभ, हर मूर्ति एक कहानी कहती है — भक्ति, कला और आध्यात्मिकता की कहानी।
अगर आप इतिहास प्रेमी हैं या जैन धर्म की विरासत को नज़दीक से समझना चाहते हैं, तो हलबीडु के जैन मंदिर आपके लिए एक अद्भुत अनुभव साबित होंगे। यह सिर्फ़ एक दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक आत्मा का जीवंत प्रतीक है।
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