आधुनिक केश लोंच: क्या आपने कभी यह सवाल खुद से पूछा है – “मैं जैसा हूँ, क्या वैसे ही खुद को स्वीकार सकता हूँ?”
या फिर – “क्या मैं अपने चेहरे पर आई उम्र की लकीरों को देखकर मुस्कुरा सकता हूँ, उन्हें छिपाए बिना?”
अगर नहीं, तो शायद ये लेख सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, जीने के लिए है।
दिखावे की दौड़: जब हम अपने आप से पीछे छूट जाते हैं
आज की दुनिया में दिखना सब कुछ हो गया है —
पर कैसे दिखना है, ये हम नहीं, समाज तय करता है।
इसी सोच के कारण लोग:
- स्किन लाइटनिंग (skin lightening) और फेयरनेस ट्रीटमेंट (fairness treatment) कराते हैं,
- उम्र छिपाने के लिए एंटी-एजिंग दवाएं (anti aging) लेते हैं,
- चेहरे पर चमक लाने के लिए ग्लूटाथियोन (Glutathione) व विटामिन C के इंजेक्शन (vitamin C) लगवाते हैं,
- और सोशल मीडिया (social media) पर लगातार खुद को परफेक्ट दिखाने की कोशिश करते हैं।
पर क्या यह परफेक्शन भीतर तक पहुँचता है?
या ये केवल ‘मैं कैसा दिख रहा हूँ’ की एक थकाऊ कोशिश बनकर रह जाता है?
त्याग: केवल शरीर का नहीं, भ्रम का भी होता है
जैन मुनि जब दीक्षा लेते हैं, तो वे अपने सिर के बाल त्यागते हैं —
यह केवल शरीर से जुड़ी किसी वस्तु को छोड़ना नहीं है,
बल्कि उस भीतर की चिंता का भी त्याग है
जो रोज़ आईने में पूछती है:
“मैं कैसा दिखता हूँ?”
यह त्याग हमें चुपचाप सिखाता है कि —
“जो प्रकृति ने दिया है, वही श्रेष्ठ है।
और जो आत्मा से निकले, वही वास्तव में सुंदर है।”
यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं,
बल्कि एक साहसी निर्णय है —
जो आज के समाज में शायद और भी ज़्यादा जरूरी हो गया है।
‘आधुनिक केश लोंच ’ क्या है?
हममें से बहुत से लोग जैन मुनियों की तरह जीवन नहीं जी सकते।
पर हम सब उनके सिद्धांतों से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
आज के युग में ‘आधुनिक केश लोंच ’ का अर्थ है —
👉 वो इच्छाएं छोड़ देना जो केवल दूसरों को दिखाने के लिए हों।
👉 अपने चेहरे को इंजेक्शन से नहीं, आत्मविश्वास से चमकाना।
👉 उम्र को छिपाना नहीं, उसे सम्मान देना।
👉 हर दिन आईने में देखकर कहना — “जैसा हूँ, वैसा ही ठीक हूँ।”
भीतर का सौंदर्य: जो कभी फीका नहीं पड़ता
जैन दर्शन कहता है —
“स्वभावो परमं सुखम्” — अपने स्वभाव में रहना ही परम सुख है।
शरीर बदलता है।
चेहरा ढलता है।
बाल सफेद होते हैं।
पर जो आत्मा है — उसका तेज, उसकी शुद्धता और उसकी सुंदरता शाश्वत है।
आज जब दुनिया इंस्टाग्राम के फिल्टर में कैद हो चुकी है,
तब जैन मुनियों का यह मौन सन्देश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है —
“जो वास्तव में हो, वही दिखो। जो दिखो, उसमें कुछ भी बनावटी न हो।”
निष्कर्ष (Conclusion) : अपने ‘दिखावे’ का त्याग ही सबसे बड़ा सौंदर्य है
आपको अपने बालों का त्याग नहीं करना,
न ही किसी तपस्या में बैठना है।
पर क्या आप इतना कर सकते हैं:
- खुद से यह कहना कि “अब मैं केवल दिखने के लिए नहीं, जीने के लिए जीऊंगा।”
- अपने चेहरे को सजाने से ज़्यादा, अपने विचारों को सुंदर बनाने पर ध्यान देना।
- और कभी-कभी सोशल मीडिया से दूर जाकर, आत्मा की आवाज़ को सुनना।
“त्याग वह नहीं जो बाहर से दिखे,
त्याग वह है जो भीतर से शांति दे।”
अब प्रश्न आपका है:
क्या आप भी कर सकते हैं ‘आधुनिक केश लोंच ’?
– यानी दिखावे की उन इच्छाओं को छोड़ना, जो आत्मा को दबा रही हैं?
शायद हाँ और शायद यही पहला कदम होगा — स्वीकृति की ओर।