“मैं रास्ते में हूँ” — यह वाक्य हम सभी ने कभी न कभी कहा है, और उतनी ही बार सुना भी है। सुनने में यह सिर्फ एक छोटा-सा झूठ लगता है, एक साधारण-सा बहाना, जिसे लोग समय बचाने या सामने वाले को शांत रखने के लिए कह देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस एक वाक्य के पीछे कितनी परतें छिपी होती हैं? यह सिर्फ लेट होने का बहाना नहीं—यह हमारी आदतों, हमारी प्राथमिकताओं, हमारी ईमानदारी और हमारे सामाजिक व्यवहार का आईना भी है।
इस लेख में हम गहराई से समझेंगे कि “मैं रास्ते में हूँ” कहने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है—क्या यह समय प्रबंधन की कमी है, सच बोलने में झिझक है, सामने वाले को नाराज़ करने का डर है या फिर यह हमारी रोज़मर्रा की “आदतन देरी” का एक सांस्कृतिक हिस्सा बन चुका है? साथ ही हम देखेंगे कि इस छोटे-से झूठ का हमारे रिश्तों, भरोसे और व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है।
यह वाक्य भले ही हल्का लगे, लेकिन इसके मायने हमारे सोचने, जीने और दूसरों के साथ व्यवहार करने के तरीके को बहुत कुछ बताते हैं। तो आइए, इस साधारण से लगने वाले वाक्य के असाधारण असर को समझते हैं—क्योंकि कभी-कभी सबसे छोटी बातें ही हमारी सबसे बड़ी आदतों का सच उजागर करती हैं।
Festival: छोटे-छोटे झूठ, बड़ा बोझ
सोचिए
सुबह ऑफिस का समय हो गया है। बॉस का फ़ोन आता है – “कहाँ पहुँचे?”
हम झट से जवाब देते हैं – “मैं रास्ते में हूँ।”
हालाँकि सच ये है कि हम अभी तक घर से निकले भी नहीं।
यह सुनने में एक “छोटा झूठ” लगता है।
पर क्या ये सच में इतना छोटा है? दरअसल, ऐसे ही छोटे झूठ धीरे-धीरे हमारी जीवनशैली बन जाते हैं।
और हर बार झूठ बोलकर हम मन, वचन और कर्म को अलग-अलग दिशाओं में खींच देते हैं।
Lifestyle: रोज़मर्रा के वो छोटे झूठ, जो हमारी लाइफ़ का हिस्सा बन चुके हैं
- “मैं रास्ते में हूँ” – जबकि अभी घर से निकले भी नहीं।
- “नेटवर्क नहीं था, कॉल नहीं उठा पाया।” – असल में मन नहीं था।
- “मैं ठीक हूँ।” – जब अंदर से टूटे हुए होते हैं।
- “पढ़ाई कर रहा था।” – जबकि मोबाइल पर समय बर्बाद हो गया।
- “ट्रैफिक में फँस गया था।” – असलियत: देर से तैयार हुए थे।
- “घर पर नहीं हूँ।” – जब मेहमानों से बचना होता है।
- “तुम बहुत अच्छे लग रहे हो।” – जबकि दिल से महसूस ही नहीं होता।
- “बस पाँच मिनट में कर दूँगा।” – जबकि पता है आधा घंटा लगेगा।
- “पैसे अभी नहीं हैं।” – जबकि किसी और जगह खर्च कर दिए।
- “एक ही पीस बचा था, इसलिए शेयर नहीं किया।” – जबकि share करने का मन नहीं था।
ये झूठ छोटे लगते हैं, लेकिन इनके कारण:
- हमें अपने ही शब्दों को याद रखना पड़ता है।
- गिल्ट का बोझ भीतर बढ़ता है।
- विश्वास धीरे-धीरे टूटता है।
- और सबसे ज़्यादा, हमारी आत्मा असली सीधापन (आर्जव) खो देती है।
Jain: आर्जव (ultimate honesty) की असली सीख
आर्जव धर्म कहता है: “जो जैसा है, वैसा ही स्वयं को प्रस्तुत करे।”
- सच हमें आज़ाद करता है – झूठ निभाने का बोझ नहीं रहता।
- विश्वास की नींव बनती है – रिश्ते पारदर्शिता से टिकते हैं, छल से नहीं।
- मन हल्का और शांत रहता है – guilt और डर गायब हो जाता है।
- आत्मा का उत्थान होता है – कपट रहित जीवन ही आत्मा को उज्ज्वल करता है।
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निष्कर्ष (conclusion)
झूठ चाहे बड़ा हो या छोटा –
वो हमें अंदर से खोखला करता है।
कल विनम्रता (उत्तम मार्दव) ने हमें झुकना सिखाया था।
आज आर्जव हमें सीधा खड़ा होना सिखाता है।
अगली बार जब आप फ़ोन पर कहें – “मैं रास्ते में हूँ”,
तो ज़रा ठहरकर सोचिए क्या ये सिर्फ एक छोटा झूठ है,
या फिर आपकी आत्मा पर एक अनजाना बोझ?
कपट रहित जीवन ही आत्मा के विकास का मार्ग है।