क्या आपको पता है कि मॉनसून में आपकी थाली ही आपकी संयम-यात्रा की पहली सीढ़ी बन सकती है? या कभी ये सोचा है कि बारिश का सीज़न सिर्फ मौसम नहीं, आपके आहार को भी धर्म या अधर्म की दिशा में मोड़ सकता है? बारिश में बाहर की गीली मिट्टी की तरह हमारे शरीर और मन भी कई बार ‘अशुद्धियों’ से भरने लगते हैं — लेकिन जैन आहार परंपरा, इसी मौसम में हमें एक ऐसा रास्ता दिखाती है जहां भोजन सिर्फ पेट नहीं, परिणाम भी शुद्ध करता है।
Rain: क्या बनाएं? — मानसून में जैन रसोई के सच्चे साथी
✅ 1. लौकी, तुरई, परवल — ये ‘सादा ही स्वाद’ क्यों हैं?
बारिश के मौसम में कीचड़ और नमी के कारण पत्तेदार सब्ज़ियों में सूक्ष्मजीव पनपते हैं। जैन धर्म ऐसे समय में बेल वाली सब्ज़ियों जैसे लौकी (bottle guard) , तुरई (ridge gourd) , परवल (pointed gourd) को प्राथमिकता देता है।
➡️ यह न केवल जीवदया है, बल्कि पाचन के लिए भी लाभकारी।
✅ 2. उबला हुआ और छाना पानी – ‘सिर्फ पानी’ नहीं, जीवन की रक्षा है इसमें
जैन मुनि वर्षा ऋतु में विशेष रूप से छना हुआ उबला पानी (Boiled water) पीते हैं ताकि पानी में स्थित असंख्य सूक्ष्म जीवों की हिंसा से बचा जा सके।
➡️ यह एक ऐसा अभ्यास है जो संयम, वैज्ञानिकता और करुणा को एक साथ जोड़ता है।
✅ 3. मूंग दाल, सूप, खिचड़ी – मानसून की जैन-शक्ति थाली हल्की, कम तली-भुनी चीजें और सूप आधारित भोजन न केवल स्वास्थ्यवर्धक हैं, बल्कि जैन आहार नियमों के अनुसार कम जीवहत्या की संभावना रखते हैं।
➡️ पेट हल्का, मन शांत और धर्म जीवित।
क्या टालें? — बारिश (rain) के वो स्वाद जो दिखते तो हैं लाजवाब, पर छुपाते हैं हानि
❌ 1. पत्तेदार सब्ज़ियाँ ( leafy vegetables) – हरी लेकिन घातक
पालक, मेथी जैसी सब्ज़ियाँ बारिश में नमी और कीटाणुओं का घर बन जाती हैं। जैन धर्म इन्हें त्याज्य मानता है, और वैज्ञानिक भी इन्हें high-risk मानते हैं।
➡️ हरियाली ज़रूरी है, लेकिन वो जो तन और मन दोनों को स्वस्थ रखे।
❌ 2. बाहर का चटपटा खाना (Street food) – स्वाद से ऊपर संयम है
Street food मानसून में नमी के कारण तेजी से संक्रमित होता है। जैन परंपरा संयमित और घर का सात्विक भोजन ही स्वीकार करती है।
➡️ स्वाद मिनटों का, बीमारी महीनों की!
❌ 3. बासी भोजन – सिर्फ पुराना नहीं, घातक भी
बारिश में बासी खाने में सूक्ष्मजीवों की वृद्धि कई गुना हो जाती है। जैन दर्शन हमेशा ताजा, उसी दिन बना हुआ भोजन करने की सीख देता है।
➡️ बासी खाना ना सिर्फ शरीर, बल्कि आत्मा की ऊर्जा को भी मैला कर देता है।
Kitchen: रसोई: जहां स्वाद और साधना मिलते हैं
जैन धर्म सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है — और उसकी शुरुआत वहीं होती है जहां रोज़ की पहली क्रिया होती है: रसोई में।
जब हम भोजन में संयम अपनाते हैं, तो हम सिर्फ आहार नहीं बदलते — हम अपने विचार, व्यवहार और संस्कार भी शुद्ध करते हैं।
तो अगली बार जब बाहर बादल गरजें, अपनी थाली को भी भीतर से साफ़ और शांत होने दें।
Jainism: आपका एक छोटा-सा ‘संयम’ — किसी अनदेखे जीव की जिंदगी का रक्षक बन सकता है।
क्या आपने कभी सोचा है, आपकी रसोई भी ‘धर्मस्थल’ बन सकती है?