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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज: संयम, साहित्य और संस्कार के युगप्रवर्तक महायात्री श्रद्धांजलि लेख – 58वें दीक्षा दिवस पर


“वो केवल संत नहीं, एक युग का निर्माण करने वाले युगद्रष्टा थे।”

आज 30 जून 2025 है — एक ऐतिहासिक और अद्भुत संयोग का दिन। आषाढ़ शुक्ल पंचमी, वही तिथि और वही तारीख, जिस दिन ठीक 57 वर्ष पूर्व, 30 जून 1968 को अजमेर के सोनीजी की नसियाजी तीर्थभूमि पर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ग्रहण कर विद्याधर अष्टगे बन गए थे मुनि विद्यासागर। आज उनका 58वां दीक्षा दिवस है संयम की उस स्वर्ण यात्रा का स्मरण जिसे युगों तक भुलाया नहीं जा सकेगा।

Acharya Shri Vidyasagar Ji Maharaj: एक साधक, एक युग

युगप्रवर्तक, युगवेत्ता, महाकवि, चिंतक और आत्मानुशासक — ये केवल विशेषण नहीं हैं, ये उस जीवित महापुरुष की पहचान हैं, जिनका नाम सुनते ही एक छवि सामने आती है — मुनि मुद्रा में ध्यानस्थ, शांत, सौम्य और आभायुक्त व्यक्तित्व – आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

🔸 उनका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा गाँव में श्री मल्लप्पा एवं श्रीमती अष्टगे के घर हुआ।
🔸 9 वर्ष की आयु में शांति सागर जी महाराज के प्रवचनों ने वैराग्य का बीज बो दिया।
🔸 20 वर्ष की आयु में सांसारिक मोह का परित्याग कर संयम पथ पर निकल पड़े।
🔸 और फिर, 30 जून 1968 को अजमेर में दीक्षा ग्रहण कर युगों के लिए अमिट साधना की शुरुआत की।

Jainism: संयम की मूर्ति, करुणा की प्रतिमूर्ति

गुरु कृपा, तप, ज्ञान और ध्यान के अद्भुत समन्वय से वे बने वह प्रकाश स्तंभ, जिसने न जाने कितने युवाओं को संसार से संयम की ओर मोड़ा।

💠 मुनि जीवन में उन्होंने केवल सात्विक, सीमित, एक समय आहार लिया।
💠 कोमल पिच्छी और नारियल का कमंडल उनके संयम उपकरण बने।
💠 प्रत्येक दो माह में केशलोंच, नित्य तप और महावीर जैसी मुनि मुद्रा — उनके त्याग का प्रमाण बनी।


Jain: साहित्य के क्षितिज पर मूक माटी की गर्जना

आचार्य श्री न केवल संयम पथ के दीपक रहे, बल्कि एक अद्वितीय साहित्यकार भी थे। उनका काव्य ‘मूक माटी’ एक युग प्रवर्तन था।

इस महाकाव्य पर

  • 4 D.Lit
  • 22 Ph.D.
  • 7 M.Phil
  • और 8+ लघु शोध हो चुके हैं।

यह काव्य हिंदी से लेकर अंग्रेज़ी, मराठी, तमिल, बंगाली, कन्नड़, गुजराती तक अनुवादित हो चुका है।
उनकी अन्य काव्य कृतियाँ:

  • नर्मदा का नरम कंकर
  • तोता क्यों रोता
  • डूबो मत, लगाओ डुबकी
  • चेतना के गहराव में

उनके 500 से अधिक हाइकु आज भी विश्व भर में प्रेरणा का स्रोत हैं।


Jainism: पदयात्रा और निर्माण

आचार्य श्री ने जीवन में 50,000+ किमी पदयात्रा की और 10 राज्यों में 120 मुनि, 172 आर्यिका माताजी सहित 400+ से अधिक साधकों की दीक्षा देकर संयम का उजाला फैलाया।

प्रेरणा से बनीं संस्थाएं:

  • भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय (सागर)
  • प्रशासनिक प्रशिक्षण केंद्र (जबलपुर, दिल्ली)
  • प्रतिभास्थली विद्यालय (जबलपुर, डोंगरगढ़, रामटेक)
  • पूरी मैत्री लघु उद्योग (जबलपुर)
  • 72 से अधिक गौशालाएं, 1 लाख गौवंश को जीवनदान

India: भारत के लिए उनका स्वप्न

“इंडिया नहीं, भारत चाहिए।”
“नौकरी नहीं, स्वरोजगार चाहिए।”
“अंग्रेज़ी नहीं, भारतीय भाषाओं में व्यवहार हो।”
“चिकित्सा सेवा बने, व्यवसाय नहीं।”
“बैंकों के भ्रमजाल से बचो।”

उनका हर विचार आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद में एक ईंट जैसा था।

Jain: एक युग का अभाव

आचार्य श्री आज हमारे बीच शारीरिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, काव्य, संयम, शिक्षाएं और प्रेरणा हर उस व्यक्ति के साथ जीवित हैं, जो सच्चे अर्थों में जीवन का उद्देश्य तलाशना चाहता है।

आज जब जैन समाज संयम स्वर्णिम महोत्सव मना रहा है, तब उनकी अनुपस्थिति हर मन को नम कर रही है।
हर श्रद्धालु की आंखें यही कह रही हैं —

“गुरुदेव, आपकी कमी आज भी हर दिन, हर क्षण महसूस होती है।
आपके जैसे संत युगों में एक बार आते हैं — और युग को रोशन कर अमर हो जाते हैं।”


नमन उस युग पुरुष को

जो स्वयं को मिटाकर एक विचार, एक पंथ, एक संयम परंपरा को जीते रहे।
जो शून्य से साधना की ऊंचाइयों तक पहुंचे — और हजारों को भी वही राह दिखा गए।

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 58वें दीक्षा दिवस पर कोटिशः नमन।
संयम की इस यात्रा को हमारा शत शत वंदन।

Live telecast: विशेष प्रसारण | देखना न भूलें


संयम स्वर्णिम महोत्सव के इस अविस्मरणीय अवसर पर प्रस्तुत है एक अनुपम दृश्य-अर्पण —
‘मूक माटी’ पर आधारित एनीमेशन फिल्म का सीधा प्रसारण

आज, सोमवार | 30 जून 2025
रात्रि 8:30 बजे से
आदिनाथ टीवी चैनल पर

मौन साधना की गहराइयों से निकली आवाज़, अब पहली बार स्क्रीन पर —
‘मूक माटी’ — वह काव्य जो स्वयं बोल उठेगा!

साहित्य, साधना और समर्पण की त्रिवेणी को संजोए यह फिल्म
आपको ले चलेगी संयम की उस यात्रा पर,
जहाँ शब्द मौन होते हैं और आत्मा बोलती है।इस ऐतिहासिक प्रसारण का साक्षी बनने का सौभाग्य न गंवाएं।

पूरे परिवार सहित जुड़िए —
क्योंकि ऐसा क्षण हर युग में नहीं आता