
गोमटगिरि इंदौर में आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के पट्टाचार्य महोत्सव के पश्चात पहली बार ऐसा दिव्य और अद्वितीय आयोजन संपन्न हुआ, जिसने उपस्थित हर श्रद्धालु के हृदय में आध्यात्मिक ऊर्जा और भावविभोर कर देने वाली प्रेरणा का संचार कर दिया। यह केवल एक समारोह नहीं था, बल्कि श्रद्धा, भक्ति, साधना और समाज सेवा का अद्भुत संगम था।
इस आयोजन ने यह दिखाया कि जैन धर्म केवल नियम और परंपराओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन में आंतरिक शांति, संयम और उच्च विचारों का मार्ग भी है। गुरुदेव के सान्निध्य में श्रद्धालुओं ने न केवल अपने हृदय को दिव्यता और भक्ति से आलोकित किया, बल्कि समाज सेवा और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी समझा। सामूहिक भजन, ध्यान, प्रवचन और धार्मिक अनुष्ठानों ने हर व्यक्ति के मन को जिनवाणी की अलौकिक ज्योति से प्रकाशित कर दिया।
यह आयोजन हर श्रद्धालु के लिए प्रेरणा का स्रोत और आत्मिक अनुभव बन गया। उपस्थित लोगों ने महसूस किया कि जब श्रद्धा, भक्ति और सेवा का संगम होता है, तो यह केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभव नहीं बनता, बल्कि पूरे समाज में सकारात्मक ऊर्जा और सांस्कृतिक चेतना का संचार करता है।
इस दिव्य आयोजन ने हमें यह याद दिलाया कि धर्म का वास्तविक उद्देश्य केवल पूजा-पाठ या परंपरा निभाना नहीं है, बल्कि इसे अपने जीवन और व्यवहार में उतारना और आने वाली पीढ़ियों के लिए जिनशासन की महिमा को स्थायी बनाना है।
- गोमटगिरि इंदौर: प्रातः 10 बजे, जब गुरुदेव की आहार चर्या संपन्न हुई, तब कैलाश विजयवर्गीय जी को उन्हें आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने विनम्रता से कहा —
“गुरुवर को आहार देकर मैं स्वयं को धन्य मानता हूं।”
उनके इस भाव ने समर्पण की सच्ची परिभाषा को सजीव कर दिया। - दोपहर 3 बजे, आचार्य श्री के गहन और आत्मजागृति से भरे प्रवचनों ने उपस्थित जनसमूह को आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया। हर वाक्य, हर विचार एक नए चिंतन का द्वार खोल रहा था।
- शाम 5 बजे, भगवान बाहुबली का महामस्तकाभिषेक ऐसी भव्यता और भावों के संग संपन्न हुआ, कि मानो आकाश भी भक्तिरस से सराबोर हो उठा। जल, पुष्प, और मंत्रों की गूंज ने वातावरण को आध्यात्मिक दिव्यता से भर दिया।
- इसी श्रृंखला में सुमति धाम के मनीष-सपना गोधा का सम्मान भरत मोदी द्वारा किया गया — यह सम्मान केवल व्यक्ति का नहीं, बल्कि समर्पित सेवा की भावना का प्रतीक था।
- प्रथम कलश का सौभाग्य संजय पटोदी एवं महेंद्र बडजात्या परिवार को प्राप्त हुआ।
वहीं शांतिधारा के पुण्यार्जक बने विकास जैन (JMB परिवार) और मुख्य पुण्यार्जक रहे भरत-कुसुम मोदी परिवार । - समाजजनों ने ₹2500 की राशि में 24 तीर्थंकरों की ध्वजा चढ़ाकर जो पुण्य अर्जित किया, वह गुरुदेव की समीपता में समर्पण की अमूल्य छवि बन गया। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आस्था की अभिव्यक्ति थी।
- इस पावन अवसर पर कैलाश विजयवर्गीय जी ने 51 लाख पेड़ लगाने का संकल्प लिया — यह सिर्फ एक घोषणा नहीं, बल्कि धरती मां के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि थी।
साथ ही उन्होंने गुरुदेव से पितृ पर्वत पर चलने का आग्रह कर इस आयोजन को और भी भावपूर्ण बना दिया। - अभिषेक के उपरांत, सभी श्रद्धालुओं के लिए वात्सल्य भोज का आयोजन हुआ, जिसमें जनसमूह ने प्रेम, सामूहिकता और एकता के साथ सहभागिता की।
- कार्यक्रम का संचालन सौरभ पटोदी ने कुशलता और आत्मीयता के साथ किया।
गोमटगिरि इंदौर: यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं था, बल्कि संयम, सेवा और जागरूकता का सजीव उदाहरण था। गोमटगिरि की पवित्र छावनी में आयोजित इस कार्यक्रम ने हर उपस्थित श्रद्धालु के मन में शांति, श्रद्धा और आत्मिक ऊर्जा का संचार किया। यह अवसर हमें याद दिलाता है कि जैन धर्म केवल पूजा-पाठ या नियम-कानून तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का मार्ग, संयम की कला, और सामूहिक भलाई के लिए कर्मयोग की सीख देता है।
गुरुदेव के सान्निध्य में यह आयोजन श्रद्धा, साधना और समाज सेवा का एक अनुपम संगम था। उपस्थित लोगों ने न केवल अपनी आंतरिक शांति और भक्ति का अनुभव किया, बल्कि सामूहिक सेवा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूकता विकसित की। कार्यक्रम के दौरान सामूहिक भजन, ध्यान और परम्परागत गतिविधियों ने प्रत्येक व्यक्ति में जिनवाणी की अलौकिक ज्योति प्रज्वलित कर दी।
इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि धर्म का वास्तविक अर्थ केवल कर्मकांड में नहीं, बल्कि जीवन में अपनाए गए सिद्धांतों और व्यवहार में निहित होता है। हमें इस ऊर्जा को केवल एक दिन के उत्सव तक सीमित नहीं रखना चाहिए। आइए, हम सब इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं, गुरुवर की शिक्षाओं को अपने व्यवहार में उतारें, और जिनशासन की महिमा को युगों तक गूंजने दें।
यह आयोजन हमें यह भी सिखाता है कि संयम, सेवा और श्रद्धा का संगम ही जीवन को सार्थक और समाज को सशक्त बनाता है।
जिनशासन की जय हो!
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